रोटी रिव्यू (1974): जब अपराधी बना मास्टरजी और पब्लिक बन गई पागल

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

अगर आप सोचते हैं कि रोटी सिर्फ आटे और पानी से बनती है — तो जनाब आप मनमोहन देसाई की फिल्म ‘रोटी’ नहीं देखे हैं। यहां राजेश खन्ना aka मंगल सिंह है जो फांसी से भागकर सीधे मास्टरजी बन जाता है। वो भी बिना B.Ed. किए।

मुमताज़ हैं बिजली, जो इतनी पॉजिटिव है कि किसी को भी लाइन पर ला सकती हैं — और यहां तक कि एक अपराधी को भी टीचर बना देती हैं।

भेष बदलो, माता-पिता चुरा लो, और फिर अपराध बोध में रहो

मंगल सिंह ने जिस रामू को मारा, उसी की पहचान लेकर उसके मां-बाप के घर रहने चला जाता है। Emotional Damage? नहीं नहीं, सिर्फ हिंदी फिल्म लॉजिक!

ओम प्रकाश और निरूपा रॉय जैसे कलाकारों ने “माँ-बाप” की भूमिका निभाई है — और वैसे भी हिंदी फिल्मों में माँ से बड़ा सीन्स कौन होता है?

साउंडट्रैक: जब किशोर कुमार बोले – “ये जो पब्लिक है, ये सब जानती है”

लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत में किशोर दा का तड़का = मास्टरपीस!
सभी गानों में वो देसी नशा है जो आजकल के रीमिक्स में नहीं मिलता:

  • “ये जो पब्लिक है” – जो आज भी राजनीति में इस्तेमाल हो रहा है।

  • “नाच मेरी बुलबुल” – जहां बुलबुल नहीं, शायद सीधा चीता नाचने लगे।

सम्पादक साहब को मिला फिल्मफेयर, बाकी सबको मिला प्यार

कमलाकर कार्कानी को फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला बेस्ट एडिटिंग के लिए — और वाकई, फिल्म इतनी तेजी से मूड बदलती है कि हर कट पर लगता है “वाह, क्या चाकू चलाया है!”

“अपराधी को टीचर बनाना है? बिजली से बात कर लो”

अगर आज के ज़माने में कोई मंगल सिंह हो, तो उसे पहले आधार कार्ड, टीईटी क्वालिफिकेशन और RTI के जवाब देने होंगे — लेकिन 1974 में बस बिजली चाहिए थी!

राजेश खन्ना की स्माइल और मुमताज़ की चमक के साथ फिल्म ‘रोटी’ अपने समय की सबसे मसालेदार थाली थी — जिसमें एक्शन, इमोशन, और किशोर कुमार का तड़का बराबर मात्रा में था।

‘रोटी’ सिर्फ फिल्म नहीं, एक पुरानी थाली है जिसमें मनमोहन देसाई की मसालेदार कहानियों की खुशबू, राजेश खन्ना की स्टाइल, और किशोर कुमार की आवाज़ का स्वाद आज भी बरकरार है।

तो अगली बार जब कोई बोले ‘भाई रोटी नहीं मिल रही’, तो पूछिए – राजेश खन्ना वाली देखी है?

“सब कुछ छोड़ो, बस देखो! LIVE श्रीकृष्ण जन्मोत्सव Vrindavan से!”

Related posts

Leave a Comment